सुधि के मोटरी से कुछ-कुछ

रउवा सभे के मालूम होखबे करी कि जिनगी के जतरा लइकई से गवें गवें आगु, बढ़त, जवानी के जीयत, अधेड़पन के संवारत बुढ़ापा के काटत एक दिन अंतिम जतरा पर निकल जाला। मनई के जिनगी में ढेर पल –छिन अइसन जरूर आवेला जवना के उ जोगा के राखलों चाहेला। भा ई कहल जाव के कुछ गुजरत पल मनई के स्मृति में आपन पक्का ठेहा बना लेवेलन सन। अइसने स्मृतियन के आधार पर कवनो विषय भा बेकती पर जवन कुछ लिखल जाला, ओकरा के संस्मरण भा स्मृति आलेख कहल जाला। भा इहो कहल जा सकेला कि संस्मरण मनई के अपने अनुभवन के एगो सुकोमल  प्रस्तुतीकरण हवे। कुछ लोग यात्रा साहित्य के एकरे अंग मानेला। ढेर लोग त इहो मानेला कि संस्मरण जीवनी आ आत्मकथा के मिलल-जुलल रूप बाटे, जवना के लिखनीहार आपन सगरे मनोजोग लगा के कागज पर उकेरेला।अक्सरहाँ देखल जाला कि जब दू-चार गो संघतिया ढेर दिन बाद एक-दोसरा से मिलेलन त पुरान दिनन के इयाद ताजा करत देखालें, मने  जिनगी के दू गो किनारन के आपुसी संवादे त संस्मरण ह। एह सभके लब्बो-लुआब ई बा कि संस्मरण कथेतर गद्य के एगो खास विधा बाटे जवना में अतीत के साहित्य के साँचा में ढाल के परोसल जाला।लेखक एगो संवेदनसील मनई होला,जवना के मन-मस्तिष्क पर घटल घटनवन के चित्र अंकित रह जाला। जब ओह घरी के ईयाद लेखक के सालेले, त संस्मरण का रूप में कागज पर उकेरा जाला। संस्मरण के भाषा सरल, वर्णन करे जोग आ अभिधा से सराबोर होखेले। संस्मरण लेखक के आत्म-संतोष  देवेला, ओहिञ्जे पाठकन खातिर प्रेरक होखेला।

संस्मरण अंक के दिसाई जब हमनी के काम करे शुरू कइनी सन त बहुत कुछ लोग पूछल, जइसे एहमें यात्रा वृत्त लिखल जा सकेला का ?कवनो खास विषय भा बेकती पर लिखे के बा का ?अइसही अउर कुछ बाति सोझा अइनी सन। आईं सभे, अइसन कुछ चिजुइयन के सझुरावे क परयास कइल जाव । संस्मरण का ह, एह पर ऊपरी हम बात क चुकल बानी। संगही अउर का का संस्मरण के भीतरी आवेला ओकरो ओर संकेत कइले बानी। सभेले खास बात ई कि संस्मरण लिखे खातिर लेखक के ओह बेकती,जगह, सजीव, निर्जीव, विषय के सानिध्य भा निकट संपर्क में आवल जरूरी बा। एकरा संगे इहो जरूरी बा कि लेखक तटस्थता के संगे अपने अनुभव के उकेरे आ सही जानकारी लोगन के सोझा परोसल जाव। आत्ममुग्धता के शिकार होखल लेखन के श्रेय हीन बना देवेला। चलत-चलत एगो अउर बात, साहित्य के एह विधा के सभेले निकट विधा रेखाचित्र विधा ह। दूनों विधन में बहुत बारीक अंतर होला।

भोजपुरी साहित्य सरिता के ई अंक एगो अइसने छोटी चुकी परयास ह, जवना में लेखक लोगन के अनुभव के मोटरी से कुछ प्रेरणाप्रद बातिन के रउवा सभे के सोझा लियावल जाव। जवन नवहा लिखनिहार लोगन खातिर आधार त बनबे करो, संगही पढ़निहार लोगनों के सीखे-समुझे जोग जरूर कुछ भेंटाय। एह दिसाई ई हमनी के एगो गिलहरी परयास ह,काहें से कि पत्रिका के एगो अंक में सभे लेखक लोगन के समेटल संभव नइखे। गहिर भा छिछिल पानी में हमनी के लगावल गोता से जेतना रतन भेंटाइल बा, उ सगरी सोझा राखल जा रहल बा। अब ई अंक रउवा सभे के पाला में बा। एह अंक पर रउवा सभे के टिप्पड़ी के भोजपुरी साहित्य सरिता सम्पादन टीम के बेसब्री से इंतजार रही।

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक,भोजपुरी साहित्य सरिता

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