भितरघात

” आजकल सुमेधा मैम बहुत उदास रहती हैं,आपको पता है कि क्या मामला है ? आप तो खास हैं न उनकी,कुछ बताया उन्होंने आपसे ? ” रुचि मैम के आँखि में जिज्ञासा क चिनगी चटकत देख पहिले त आद्या के नीक ना लगल बाकिर बात टाले के गरज से अपने के काबू में करत ऊ धीरे से कहलीं – ” देखिए ,मैं उनकी खास जरूर हूँ लेकिन उनके पर्सनल स्पेस में दखल नहीं देती।आप से भी यही उम्मीद है।” आवाज़ के काबू में कइलहूँ के बाद भी तिताई ना गइल रहे।मुँह बिचकावत रुचि मैम स्टाफ रूम से बहरे चल गइलीं।आद्या मन बना लेले रहलीं कि आज सुमेधा से बात करिए के रहीहन कि आखिर बात का ह ,काहें आजकल उ एतना परेसान रहेलीं।एतना अल्हड़,एतना खुशमिजाज रहे वाली, हँसे-हँसावे वाली,सबके दुख -सुख में हिस्सा लेवे वाली सुमेधा के अचानक से ई का हो गइल कि गुमसुम उदास रहे लगलीं।हमेशा सजल-संवरल सुमेधा के देख के आद्या बिहँस के कहें -” यार ! तू कभी तो थक लिया कर।एक साथ तीन-तीन क्लास लेके भी कैसे इतनी फ्रेश रहती है ? तेरी साड़ी की एक -एक प्लेट तक दुरुस्त, सजी-सँवरी।लगता है कि अभी-अभी तैयार होकर चली आ रही है।यहाँ हमें देखो, दो क्लास लिए नहीं कि गला घरघर करने लगता है और चेहरा मुरझा के सिकुड़ जाता है।राज क्या है मैडम ? जरा हमें भी बताया जाय। ।” चुहल करत आद्या के देख के सुमेधा उनके अँकवार में भर के कहें- ” बस मनचाहा मीत मिल जाने का असर है।तुझे भी मिल जाएगा तो ऐसे ही खिली रहेगी ,समझी न मेरी जान।” ‘ मेरी जान ‘ सुमेधा क तकिया कलाम रहे।रीझ के चाहे खीझ के ऊ सबही के अइसहीं टोकें -टहोकें आ हँसत – हँसावत रहें। पूरे कालेज में कुछ जरतुहा लोग के छोड़ के सुमेधा के रूप गुन क बड़ाई सबही करे। सुमेधा क पढावल लइका -लइकी बरिस दस बरिस बादो उनसे मिलें आवें।टीचर्स डे पर सबके ले ढेर बड़ाई उनही क होखे।उनके पढ़वले क,उनके व्यक्तित्व क छाप छात्रन पर एतना ढेर रहल कि उनके विभाग क बाकी शिक्षक लोग भितरे -भित्तर जरे- बुताएँ । बाकिर एहर बीच आद्या उनकर उड़ल-उजरल रंग -ढंग देख के हरान-परेशान रहलीं। बातचीत के दौरान, चाय -नाश्ता करत घरी बातेबात में एह उदासी क कारण जानल चहलीं बाकिर सुमेधा हँसके टाल दिहलीं। एहर बीच सुमेधा के देख के लगबे ना करे कि ऊ पहिले वाली सुमेधा हईं।एकदम से उलट रंगरूप हो गइल रहे।उज्जर गुलाबी रंग झंवा गइल रहे।दमकत – पानीदार चेहरा बेरौनक-बेनूर, आँखि के नीचे करिया घेरा बन गइल रहल।लगे जइसे कई रात से ऊ ठीक से सुत्तल ना हईं।जवने होठ पर सुंदर -चटख लिपस्टिक लगल रहत रहल ऊ एकदम से पपड़िया गइल रहे।सोना -गहना से संवरल -सजल सुगढ़ , छरहर देह दुबराइल जात रहे।
एक दिन आद्या सेमिनार हाल से सुमेधा के जबरन खींचत कैंटीन के ओरी ले गइलीं अऊर कॉफी क कप थामवत कहलीं – ” क्या हुआ है तुझे ? बता ? आज तो तूने हद ही कर दिया यार ! अपने डिपार्टमेंट तक का नाम बताना भूल गई।तुझे अपने कलीग के नाम ठीक से नहीं याद ? दस साल से हम साथ हैं न ? फिर भी , फिर भी तू मिश्रा को शर्मा जी और वर्मा को मिस्टर सिंह कह रही थी। सब कितना मज़ाक बना रहे थे।मैं आज जानना चाहती हूँ कि कौन सा रोग तुझे भीतर ही भीतर खाए जा रहा है ? बता न प्लीज ! ” आद्या के एकुल बात-बतकही के सुनते हुए भी लगत रहल कि सुमेधा कुछ सुनत -समझत ना हईं।उनकर नज़र शून्य में कहीं ठहर गइल रहल।कॉफी ठंडा हो चुकल रहे लेकिन कप ओइसहीं हाथ में टंगाइल रहे जइसे उनके थमावल गइल रहे।उनकर ई हाल देखके आद्या घबरा गइलीं।कॉफी क कप उनके हाथ से लेत कहलीं कि – ” चल कहीं और चलके बात करते हैं। किसी रेस्टोरेंट में चलें ? “
” नहीं ।” सुमेधा जइसे नींद से जागत बुदबुदइलीं।
” तब कहाँ चलेगी ? तेरे घर चलें ? जीजा जी और बच्चे तो आ गए होंगे न अब तक ? ” सुमेधा क तरहत्तत्थी थामत आद्या पुछ्लीं।
” अपने रूम पर ले चल ..।” पर्स कंधा पर टाँगत सुमेधा उठ गइलीं।आद्या के घोर अचरज भइल।
उ हड़बड़ा के कहलीं – यार ! तू कहीं और चल।मेरा कमरा बहुत बिखरा है, हमेशा की तरह।तू ही कहती थी न कि नरक में चली जाएगी लेकिन मेरे रूम पर नहीं आएगी।अब क्या हो गया है तुझे ? सोच ले। फिर न कहना कि बताया नहीं।”
” नहीं कहूँगी।चल तो ।” आद्या रास्ता भर सुमेधा में आइल एह बदलाव के कारन के बारे में सोच -सोच के हलकान रहलीं बाकिर कवनों नतीजा पर ना पहुँच पवलीं।रूम क ताला खोलत घरी आद्या लाज-संकोच से भरल जात रहलीं।एतना दिन बाद सुमेधा घर आइल रहलीं आ ठीक से बइठवहूँ के साफ-सुथरा जगह ना रहल।उ जल्दी -जल्दी बेड पर बिखरल समान उठा के एक ओरी धइलीं आ सुमेधा के बइठा के चाय अऊर मैगी बनावे किचन में चल गइलीं। किचन से ही उनके साफ -साफ़ सुनाई देत रहे कि सुमेधा क मोबाइल बार -बार बजत रहे लेकिन ऊ उठावत ना रहलीं।जब सात -आठ बार अइसन भइल त आद्या आके उनके टोकलीं – ” उठा क्यों नहीं रही ? घर से जीजा जी का कॉल होगा।देर हो गई है,परेशान हो रहे होंगे।बता दे कि तू यहां है।”
सुमेधा आद्या के हाथ से मैगी अउर चाय लेत कहलीं –
” आ बैठ।चाय पी तू । फ़िक्र मत कर।कोई मेरे लिए परेशान नहीं है। “
आद्या छुरी में मैगी के गोल -गोल लपेटत शरारत कइलीं – ” ओहो तो जे बात। लड़ाई हुई है ? कोई नहीं। कभी -कभी लड़ने झगड़ने से प्यार बढ़ता है। चिंता नई करने का।आज चलकर चुटकियों में मामला ठीक कर दूँगी। देख बस … “
आद्या क बात अबहीं पूरा ना भइल रहे कि सुमेधा हिचक-हिचक के रोवत कहलीं – ” कुछ ठीक नहीं होगा आद्या।सब बिखर गया ,बर्बाद हो गया।दस साल की गृहस्थी मिट्टी में मिल गई।” सुमेधा के अँकवार में भरत, चुप करावत आद्या अवाक रहलीं। घंटा -डेढ़ घंटा लगल सुमेधा के समझा-बुझा के चुप करावे में।रो -रो के सूज गइल डबडब आँख से एकटक आद्या के निहारत सुमेधा कहलीं – ” मेरी दुनिया उजड़ गई आद्या।जीने की वज़ह ही नहीं रही।”
” ऐसा क्या हो गया यार ! तू इतनी बोल्ड होकर भी ऐसी बातें कर रही है।देख मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।बता तो क्या हो गया ऐसा ? ” आद्या क घबरहट के मारे मय देह काँपत रहे।
” नीरज ने धोखा दिया।मेरे नीरज ने ? उसका अफेयर चल रहा है। यकीन करेगी ? “
“क्या ? जीजा जी का ? ऐसा कैसे हो सकता है भला।तुम दोनों की जोड़ी की तो हम मिसाल देते हैं।कितना प्यार करते हैं वे तुझे।” आद्या हैरान रहलीं।
“यही तो।इसी भरम में घिरी हुई शायद मैं जिंदगी गुजार देती लेकिन एक दिन उसका मैसेज देख लिया।तू यकीन करेगी आद्या ! उस दिन तक वह आदमी मेरे लिए मेरा प्रेमी पहले था,पति बाद में।कैसा लगा जानती है ? ऐसे जैसे कोई मेरी जान निकाले जा रहा है। उसी दिन से ऐसा लगता है जैसे मैं हूँ ही नहीं इस शरीर में।मैं इस तरह घुट -घुट कर नहीं जी सकती आद्या !” सुमेधा फिर से फूट-फूट के रोवे लगलीं।उनके सम्हारत ,चुप करावत आद्या पुछलीं – ” जीजा जी से बात की तूने इस बारे में ? “
” हाँ ! कोई पछतावा ,कोई मलाल नहीं उसे।निर्लज्ज ! कहता है कि छोड़कर जाना है जल्दी चली जा…। यह वही नीरज है आद्या, जो मेरी एक झलक के लिए कॉलेज में मारा -मारा फिरता था।जिसने कितनी चिरौरी-विनती करके मेरे घर वालों को राजी किया था।दस साल बीतने के बाद भी जो यही जताता रहा कि उसका मेरे प्रति प्यार गहरा ही हुआ है,कम नहीं।मुझे कभी लगा क्यों नहीं कि वह कहीं और भी इनवॉल्व है ? मैं जो साइकोलॉजी की प्रोफेसर हूँ। लगता था कि माइन्ड रीडिंग का भी हुनर है मुझमें लेकिन इस मामले में सब फेल हो गया।” सुमेधा के सांत करे क कोसिस करत आद्या धीमे से कहलीं –
” हो सकता है कि वे तुझे चिढ़ा रहे हों या कि सता रहे हों ?” आद्या के एह मासूमियत पर सुमेधा उदास हँसी हँसत कहलीं – ” आद्या !इस मामले को पूरे छह महीने चार दिन हो गए आज।काश ! यह मज़ाक होता।काश ! यह शरारत होती।लेकिन ऐसा नहीं है मेरी जान ! यह हमारी तबाही का जानलेवा सच है।” सुमेधा क आँख फिर से भर आइल।
आद्या के कुछ समझे में ना आवत रहे कि का कहके सुमेधा के समझावें ,तसल्ली दें।दोनों ओरी घनघोर चुप्पी रहल।दस -पंद्रह मिनट बाद सुमेधा कलाई घड़ी देखत कहलीं – ” अब चलती हूँ।बच्चे वेट कर रहे होंगे।”
” बच्चे जानते हैं इसके बारे में ?”
” बच्चे ही नहीं, नीरज और मेरे मम्मी -पापा भी सब जानते हैं।लेकिन अफसोस ! कोई कुछ नहीं कर सकता। इस मामले में सब चुप हैं बस मेरे भीतर का दुख ही चुप नहीं हो रहा है।देखो तो कैसे बाहर आकर सारी देह पर काबिज़ हो गया है।सभी बिना बताए जान गए हैं कि प्यारी सुमेधा मैडम अब बेचारी हो गई हैं।अच्छे -अच्छों को नाकों चने चबवाने वाली खुद की नाक बचाने में लगी है।हजारों -लाखों स्टूडेंट्स की स्ट्रेंथ और मेंटोर को आज खुद की राह नहीं सूझ रही,खुद के ही क़दम लड़खड़ा रहे।तुम्हारी सुमेधा खतम हो चुकी है आद्या !”
सुमेधा फिर से रोवे लगल रहलीं।आद्या उनके अँकवार में भरके उजबुक नियन पूछ बइठलीं — ” अब आगे क्या करेगी ? जीजा जी को माफ कर देगी या … ? ” आद्या के एह अटपटा सवाल पर सुमेधा उदास हँसी हँसत कहलीं -” तू भी न आद्या ! बहुत मासूम है अभी तू मेरी जान ! ग़लती की माफ़ी होती है भितरघात की नहीं।चल अच्छा, चलती हूँ।ख्याल रख अपना।” सुमेधा चल गइल रहलीं बाकिर उनकर उपस्थिति आद्या के दिल-दिमाग़ में अबहियों टभकत रहे।
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सुमन सिंह

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