१९७९ – १९८० के साल रहल होई , जब बुढ़िया माई आपन भरल पुरल परिवार छोड़ के सरग सिधार गइनी । एगो लमहर इयादन के फेहरिस्त अपने पीछे छोड़ गइनी , जवना के अगर केहु कबों पलटे लागी त ओही मे भुला जाई । साचों मे बुढ़िया माई सनेह, तियाग आउर सतीत्व के अइसन मूरत रहनी , जेकर लेखा ओघरी गाँव जवार मे केहु दोसर ना रहुए । जात धरम से परे उ दया के साक्षात देवी रहनी । सबका खाति उनका मन मे सनेह रहे , आउर छोट बच्चन खाति त उ सनेह के दरिया रहनी । बाक़िर उनकर जीवन सुरुए से दुख आउर दरद के लमहर बवंडर ले के आइल रहे ।
बुढ़िया माई के बचपन के नाम त राजेश्वरी रहल । उनकर नइहर खुसहाल आउर भरल पुरल रहे। बालपन त सबही के हंसी-खुसी में बीतिए जाला , उनकरो बीत गइल । फिर गवें गवें उनका बियाह के खाति लइका के खोज होखे लागल । उनका दुनो भाई , बाबू , चाचा – पीती लोग जीउ – जाँगर से जुट गइल रहे । आखिर एक दिन लइको मिल गइल , पढल – लिखल नीमन संस्कारी परिवार से रहल उहो । खूब धूम-धाम से बरात आइल आउर उनकर बियाह हो गइल । लेकिन ओहि दिन से जइसे उनका सुख चैन मे केहु के नजर लाग गइल । उ मरद जेकर उ मुहों ना देखले रहस , बियाहे के चार महीने के भीतरी मू गइलें । ओहि दिन से उनका नइहरे में बिधवा के बस्तर पहिने के पड़ गइल । अपना मरद के सुख आउर साथ का होला , उनका भीरी जीए के एको छन नसीब ना भइल ।
एक त बिधवा लइकी ऊपर से नइहर में रहल , गाँव जवार मे त बहुते शिकाइत के बात होला । उनकर भाई उनके ससुरारी जा के लइकी के बिदाई खाति निहोरा कइल लोग । बाकि आपन लइका खोवला क दरद आउर ऊपर से गाँव समाज मे होखे वाला खुसुर फुसुर से तंग उहो लोग हामी ना भरलस । थक हार के बात पंचइती में गइल , पंच लोग समहुत हो के ई निर्णय कइलस कि बात के लइकी के ऊपर छोड़ दिआव , लइकी चाहे त दुनों परिवार मिल के दोसर बियाह करावे या फेरु ससुरारी जाइल चाहे त ससुरारी वाला लोग बिदा करा के ले जाव । वैधव्य आउर सुहागिन होए क चुनाव रहल , बाक़िर ओकरे बादो उ बिधवा बन के रहल मंजूर कइली । बिधवापन के आपन किस्मत आउर ससुरारी के आपन करम भूमि मान के उ ससुरारी आ गइली ।
बुढ़िया माई अपना घरे यानि ससुरारी मे एगो बिधवा नीयन अइनी । उहवाँ अइला के बाद सबका के आपन बानवे ला सगरी उताजोग कइनी आउर कामयाबों भइनी । घर के दशा संभारे खाति उनका कई गो निरनय लेवे के परल । अपना साहस से उ हर लीहल निरनय सफल बनवली । उनकर पहिलका निरनय छोट देवर के बियाह करावल रहल । बुढ़िया माई घर मे सबसे बड़ रहली , से सभे केहु उनका से सउंजा जरूर करसु । उनका परयास से घर में खुसी लवटल । देवरानी के साल भर मे बेटा क जनम भइल , खूब खुसी मनावल गइल , सोहर गवाइल , बायन बटाइल । आपन कुले गोतिया दयाद नेवतबों कइली । बाक़िर बुढ़िया माई से बीपत के त जइसे चोली दामन के साथ रहे , बेटवा जब ४ बरीस के भइल तब उनकर देवरो साथ छोड़ गइलन । अब घरे मे दु गो बिधवा मेहरारू , एगो छोट बच्चा , एगो उनका सबसे छोटका देवर , अइसन हालत मे अइला के बाद घर सम्हारल आउर मुसकिल हो जाला । बुढ़िया माई त सती नीयन जीवन जीयते रहनी , उनका देख उनकर सबसे छोटका देवरो जिनगी भर बियाह न करे क ठान लीहने ।
बुढ़िया माई क समय के संगे संघर्ष जारी रहल । अब घर आउर बाहर ,खेती बारी के कुल्हि जीमवारी दुनों लोग अपना अपना सीरे ले लीहलस । एह तरे जिनगी के गाड़ी आगे घसके लागल । बुढ़िया माई दिन रात लइका के परवरिस करसु अउर घर सम्हारे में लाग गइलिन, काहे से कि उनका देवरानी आपन मानसिक संतुलन अपना मरद के जइते खो चुकल रहनी । बुढ़िया माई ओह लइका पर आपन कुल्हे दुलार लूटा दिहली । अब उहे लइका पूरे घर खनदान के चिराग रहल । लइका के देख- भाल आउर ओकर नीमन परवरिस दीहल बुढ़िया माई के जीवन के सार बन गइल । बुढ़िया माई ओहमे सफलों भइनी । समय क चकरी त कबों न रुकेला । धीरे धीरे उ लइकवो बियाह जोग हो गइल। बुढ़िया माई फेनु अपना के एगो नवकी जिमवारी खाति तइयार कइली । लडिका क बियाह भइल , बुढ़िया माई लडिका के माँई आउर बाबू दुनों के फरज निभवलीन । बहुरिया के नचिगो न बुझाये दीहनि कि उ आपन सासु ना बानी । उ त बहुरिया खाति सग महतारी से बढ़ के हो गइनी ।
गवें-गवें समय बीतत रहे , बुढ़िया माई घर आउर बाहर के सगरी जिमवारी अपने सिरे ओढ़ लिहली , काहें से कि उनकर सबसे छोटकों देवर जवन ओह घरी घर मे अक्सरुआ सवांग रहलन , एगो दुर्घटना के चपेट मे आ गइलन । चलहूँ फिरे जोग नाही बचलन । ओहि घरी घर मे एगो नवका मेहमानो आवे वाला रहल । नियति के का मंजूर बा, ई कोई ना जनेला । नवका मेहमान बेटवा के रूप में घर में आइल । ई समाचार एक बेरी फेरु से घर मे गीत गवनई , सोहर , बायन के दिन लउटा दीहलस । बाक़िर खाली दु – चार दिन खाति , पंचवे दिन उनका छोटको देवर उनका साथ छोड़ गइलन । शायद इहो दुख बुढ़िया माई के ओतना नाहीं दुखी कइलस , जेतना दुखी उ आपन जिनगी मे अपना देवर के एगो बात के मान लीहनी । उ घटना बुढ़िया माई के जीवन के अइसन घटना रहल जवना के उ कबों न भुला पवली । एक दिन अइसन भइल कि उनका देवर उनका के बोलवलन, आउर कहलन कि सुनत हऊ हमरे लगे कुछ रूपिया हउवे , एके तू अपना दिन रात खाति रख ला । कहे से कि हम अब कुछे दिन के मेहमान बानी , ई रूपिया तहरा काम आई । का पता बा कि जवने लइका पतोह में तू दिन रात एक कइले बालू , ओहनी के तोहरे बुढ़ाई मे तोहार सेवा टहल करिहन सन कि नाही । ई सुनते बुढ़िया माई रोवे लगलिन आउर उ अपने लइका के बोलाय के कहनी कि ए बचवा सुनत हउवा , तोहार छोटका बाबू कुछ रूपिया रखले बाड़न , उ तोहरा से छुपा के हमरा के देवल चाहत बाड़न । सुना ए बचवा , एगो तिल्ली लिया के ओह रूपिया मे तू आगी लगा द । हमरा के उ रूपिया ना चाही । अगर हमरा आपन ए लइका के पाले पोसे मे कवनों कमी होखल होई , त ऊपर वाला एगो आउर दुख दे दी , लेकिन उहो हमरा खाति कम्मे होखी । उनकर ई बात सुनके ओह घरी घर मे मौजूद सभे कोई रोवे लागल । अइसन रहनी उ बुढ़िया माई । अजुओ ले उनकर कहल कुल्हि बातन के लछिमन रेखा नीयन उनका घर मे मानल जाला । धन्य रहनी उ बुढ़िया माई आउर धन्य बा ओह घर के लोग जिनका के देवी नीयन बुढ़िया माई के सँग मिलल ।
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक
भोजपुरी साहित्य सरिता