बहत हर आदमी धारा में लेकिन
किनारा पा सकल ना आज तक भी ,
सहारा अब कहां पाईं, भेटाई
इशारा कर रहल इतिहास तक भी ।
खुदी के हाथ पर विसवास राखी
ओही के आखिरी पतवार बुझी।
नदी के लाश बेहतर बा गुरूजी।
नदी के लाश,,,,,,,,, ।
नियम कानून कऊनो ना बनल ह
कि कऊने रास्ता से केई जाई ,
उहा दरबान भी मिलीहे न तोहके
कि बढ़ी के बोल दे एहरे से आईं ।
तोहार इमान ही बलवान ओहिजा
भरल जिनगी जवन तोहसे अबुझी,
नदी के लाश बेहतर बा गुरूजी ।
नदी के लाश,,, ।
समय के शाह भी सिकुडल बा अंदर
फसल पुरजोर अनयासे भंयकर ।
तनिक पन्ना पटल के देख ले सब ,
उ पोरष होय या होवै सिकंदर।
भला ओहमे भी तु चाडक्य खोजा,
त कहबा इ तरिका बा सही जी
नदी के लाश बेहतर बा गुरूजी ।
नदी के लाश,,,,, ।।
गजब माने होला बिहाने बिहाने
सुकऊवा बीहाने के दिशा देखावे,
जोन्ही अकाशे ले पहर बतावे।
पव के सहारा प जागेला मनई ,
इहे भिनसारा उंघाई छोडावे ।
दीआ अऊर ढ़िबरी जुड़ावस फलाने ,
गजब माने होला बिहाने बिहाने।
ओहर बांग मुर्गा ओहर कोयल बोले ,
मइनी गउरइया मुडेरी प डोले ।
डकारे ला बैला आ पांडा अखाड़े ,
दुहातिया भइस असाठी किनारे।
आ डाली के लेहना बहारस पुराने ,
गजब माने होला बिहाने बिहाने।
जगा द जा बाचा के आवस दुवारे ,
कहा बाली बाची मकनुआ गोहारे ।
आ ले जा हो बुढी देखा खाण पपरा ,
लउका ह तोरल बनाव जा कतरा ।
आवत बाडे पाहुन विदाई बनाने,
गजब माने होला बिहाने बिहाने।
पराते में चउसा गोताइल ह देखी
ठिल्ली में सिलफर घोराइल ह देखी
पहारे क भेली ह थरिया में फोरल,
सिंघाडा ह बाहा के खांची भर धोवल।
त दतुइन दबे लागत सभके जबाने,
गजब माने होला बिहाने बिहाने।
खांची कुदारी बा कांहे कपारे ,
जइहा भर घुमे मत रहिह दुवारे।
कहत गइले ओहर से कचरी भेजाइब,
भेजा दीह खाना अबेरे ले आइब।
लइका त खुश बाबा गइले सिवाने,
गजब माने होला बिहाने बिहाने।
आखिरी अटल ,,,
मुख वेद उचारत जन्म लिये
एक विर महा बलधीर कहाई ,
बोअत ज्ञान फिरे सगरी
डगरी मंहकी पगरी बतलाई।
मारी सफेदी के कालिख में
हिरवा के नियन चमकल सुघराई,
राजा भए त भए अइसन
जनता भी कहल देखा राजा जी आई।
एक्के गो देश के पुत उहे
पहिला भी उहे उहे आखिरी भाई ,
एक्के सहारा मां भारती के
ओकरा बिना माता कहां फिरू जाई।
लोग बतावे कि सुरज ह
न रही त कहा से फिर आई ललाई,
जाई त जाई संघे पुतरी
दिनहू मे न लऊकिहे लोग लुगाई।
नाद संगे इहा वेद रहे
जहां वेद रहे उहां नाद ए भाई,
जाती आ पाती के छोडी चलो
दुनिया के इहे इतिहास बताई।
देले कलाम के देश तबे
मनलस दुनिया उनकर समताई,
आ हार के भी हस के कहले
देहलस जनता हमके ठुकराई।
पाप के नाम न बा उंहवा
पपिया भी रहे त रहे सकुताई,
तारन मारन काटन घाटन
साथ रहे त रहे दुबकाई।
मित के मित ह पुछी जनी
हियरा गुदरी तक देई चढाई,
दुश्मनी के भी महारथी ह
सोचला करगिल क्लियर हो जाई।
सन्नी भारद्वाज
भभुआ