चान अब त जहर तकले,निगलि जाता मानि लीं।
रोज सूरुज एक रत्ती,पिघलि जाता मानि लीं।।
हमरा जिनिगी में केहू के प्यार, शायद ना रहे।
हरेक पल सभके मुखौटा,बदलि जाता मानि लीं।।
एह शहर के आदिमिन्हि के,चाल कइसन हो गइल?
बहिनि-बेटिन्हि के करेजा,दहलि जाता मानि लीं।।
जहां हर रिश्ता के एगो,मोल- मरजादा रहे।
नेह-नाता ऊ पुरनका,ढहल जाता मानि लीं।।
जाति पर,कुछु धरम पर,सभ आपुसे में बंटल बा।
राष्ट्र सर्वोपरि के भावे,मिटल जाता मानि लीं।।
चाह दिल में रहे हरदम,हम जिहीं,हंसि के जिहीं।
अब त मन,बस रोइये के,बहलि जाता मानि लीं।।
रोज सइ-सइ निरभयन्हि के,के करी रक्षा भला?
सोचिये के खून भीतर,खउलि जाता मानि लीं।।
- अनिल ओझा नीरद