गजल

अपन लड़की सयान हो गइल ,

रात जागल बिहान हो गइल  ।

 

आज माई बेमार का भइल ,

सून घर कऽ दलान हो गइल ।

 

हमरे सीना  में लागल दरद,

छुटकी लड़की हरान हो गइल ।

 

भाई -भाई में नाहीं पटल

आध-आधा चुहान हो गइल ।

 

जब सहारा न कोई रहल,

तब बुढा़ई जवान हो गइल ।

 

कान बेटा कऽ भरलस बहू ,

कुल कमाई जियान हो गइल ।

 

अपने चीनी कऽ सून के बखान

गुड़ के छाती उतान हो गइल ।

 

 

  • मोहन द्विवेदी

महेन्द्रा इंकलेव, गाजियाबाद

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