अपन लड़की सयान हो गइल ,
रात जागल बिहान हो गइल ।
आज माई बेमार का भइल ,
सून घर कऽ दलान हो गइल ।
हमरे सीना में लागल दरद,
छुटकी लड़की हरान हो गइल ।
भाई -भाई में नाहीं पटल
आध-आधा चुहान हो गइल ।
जब सहारा न कोई रहल,
तब बुढा़ई जवान हो गइल ।
कान बेटा कऽ भरलस बहू ,
कुल कमाई जियान हो गइल ।
अपने चीनी कऽ सून के बखान
गुड़ के छाती उतान हो गइल ।
- मोहन द्विवेदी
महेन्द्रा इंकलेव, गाजियाबाद