पहिले रSहे सरल आ सहज आदमी
आज नफरत से बाटे भराल आदमी ॥
गीत जिनगी के गावत – सुनावत रहे
अब तs जिनगी के पीछे पर्ल आदमी ॥
आदमी जे रहित तs करित कुछ सही
आदमी के जगह बा मरल आदमी ॥
अपना वइभव के तिल भर खुसी ना भइल
देख अनकर खुसी के जरल आदमी ॥
राण – बेवा भइल अब त इंसानियत
माँग मे पाप कोइला दरल आदमी ॥
कब ले ढोइत वजन नीति के ज्ञान के
फायदा जेने देखलस ढरल आदमी ॥
- अशोक कुमार तिवारी
बलिया