कम में गुजर-बसर रखिहऽ!
घर के अपना, घर रखिहऽ!
मुश्किल-दिन जब भी आवे
दिल पर तूँ पाथर रखिहऽ.
जब नफरत उफने सोझा
तूँ ढाई आखर रखिहऽ.
आपन बनि के जे आवे
सब पर खास नजर रखिहऽ.
दर्द न छलके ओठन पर
हियरा के भीतर रखिहऽ.
एह करिखाइल नगरी में
दामन तूँ ऊजर रखिहऽ.
- डॉ अशोक द्विवेदी