घूमत रहलें गल्ली-गल्ली
देखत कहवाँ ऊंच-खाल बा।
पूछलें रामचरितर उनुसे
का हो मुखिया ! का हाल बा।
कवन नवकी घोषना भइल
कतना फंड बा आइल
रउरा घरे मुखियाइन त
रहनी खूबै धधाइल।
हमनी के ना कुछौ मयस्सर
रउरा धइले खूब ताल बा।
का हो मुखिया ! का हाल बा।
पर शौचालय बन्हल कमीसन
मनरेगा बा लमहर मीसन
एह घरी चलत बा जमके
पूजा घर के उद्धारी सीजन ।
देवी देवतन के कामो में
रउरा छनत खूब माल बा।
का हो मुखिया ! का हाल बा।
पानी के सपलाई खातिर
ओहमें जुटलें ढेरे सातिर
सड़को के कहाँ बकसला
मोका आवे वाला बा फिर ।
कवने हित के कहाँ नेवतबा
अबरी कवनो नई चाल बा।
का हो मुखिया ! का हाल बा।
कोटा पर चला के सोंटा
दमड़ी बनवला खूबे मोटा
एक्कै घर में कई गो कारड
मजलूमन के गर के घोटा ।
तिगड़म सही जोगड़ले हउवा
सगरों गलत तहरे दाल बा।
का हो मुखिया! का हाल बा।।
कहाँ लगावे मालिक पहरा
खूब विकास भइल बा तहरा
गाँव के मनई रेता फाँकत
अपने मोटरकार में टहरा ।
सरकारी माल पचावे ला
तहरा लग्गे फ़िट्ट जाल बा।
का हो मुखिया ! का हाल बा।
पट्टा कइला चिह्न चिह्न के
माल दबवला गिन गिन के
बिरधा पेंशन खुबै डकरला
दुखी बनवला दीन हीन के।
जहिया बइठी जॉच साँच के
सोचिहा जेपी के कमाल बा।
का हो मुखिया ! का हाल बा।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी