कुरसी के महूरत न भेंटइलें हो रामा,
करिखा पोतइलें।
तब नाही बुझनी माई मोर बतिया
कुरसी पठवनी दोसरा के सेतिहा
बनलो भाग आगी जरी गइलें हो रामा,
करिखा पोतइलें।
बोलिला दूसर बोला जाला दूसर
सभही कहेला अब घूमी ना मूसर
भदरा मोरे भागे घहरइलें हो रामा,
करिखा पोतइलें।
सभका हुलासे दुअरो अगराइल
हमरा एकहू न लगन भेंटाइल
लोकतंतर के डंका पिटइलें हो रामा,
करिखा पोतइलें।
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी