कजरी

भर सावन मोहे तरसइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

कवना सउतिन में अझुरइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

 

खेतवा फाटे अस फटे बेवइया

बेहन सूखत जइसे मुदइया

काहें असवों नाहीं अइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

 

कइसे जीहें चिरई-चुरमुन

बबुआ चलिहें कइसे ढुनमुन

ई बुझियो ना सरमइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

 

मचल बाटे हाहाकार

अवता लेता सभे उबार

कवना बातिन से कोहनइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

 

तोहू भइला जस विकास

तूरला किसानन के आस

जनता फेरा में फंसइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

 

बाबा तिकवेलें अकासे

बदरु होखिहें आसे पासे

केकरा सेजिया जा ओंघइला

हो बदरु कहवाँ भुलइला ना।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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