आपन बात

अझुरहट के सझुरावत ,रसता बनावत गवें-गवें आगु बढ़े के जवन तागत साहित्य से मिलेले उ कहीं अउर से भेंटाले कि ना, एह पर कुछ कहल एह घरी हमरा उचित नइखे बुझात। भोजपुरी साहित्य के धार के आपन बहाव ह,लहर ह,तरंग ह, हुहुकारल ह, फुफुकारल ह। ओही में आपन-आपन नइया लेके हिचकोला खात किनारा पहुँचे क ललक जिनगी के प्रान वायु लेखा बा। आजु भोजपुरी में जहाँ साहित्य के झोली भरा रहल बा, उहें एहमें ढेर विकारो आ रहल बा। जवने क हाल-समाचार समय-समय पर उतिरात रहेला। कई बेर साँच के साँच होखला के सबूतो बेहयाई का संगे मंगाला। अइसन करे वाला लो गिरोह आ गोल के संगे होला। अइसनका गिरोह के लोगन से नैतिकता के उमेद कइल कोइला के खदान में हीरा हेरले लेखा होला। अजुवो जात-पात ,धरम आ क्षेत्र  के रसरी साहित्यिको लोग धूरी में बर रहल बा। बरते भर नइखे ओकरा के ओढ़ के डउड़िया रहल बा। जेतने गोल-गोलबंदी, ओतने अलगा तरह के लीला। कादों सुने में त इहो आवता कि एही का चलते लीलाधर रणछोर कहाये लगलें। संस्था के चलावे वाला लोग मुँह देख देख के कुछो कह आ कर रहल बा। बड़का-बड़का बैनर से लेके छोटका तक एक्के संगे कदम ताल क रहल बाड़ें। एही में दक्षिण पंथ आ वामपंथ आपन-आपन राग छेड़ रहल बा। बाउरो का संगे ठाढ़ होखे वालन के बड़ जमात बा। बिरोध चीन्ह-चीन्ह के हो रहल बा। अइसन करे वाला लोग दोसरा पर अंगुरियों उठा रहल बा। मौलिकता के बात उहो कर रहल बा, जेकर मौलिकता से नया भा पुरान कवनों तरह के परस्परी नइखे। सभे सेवा के दंभ देखा रहल बा आ हमनी देख रहल बानी सन।

कुछ अइसने झंहावतन में अझुराइल मनई के मन उचाट होखे लागे त संसय न करे के चाही। अपना ओही मन छान पगहा में ओनच के सोझे चलवला के चलते ई अंक उपरियाए जा रहल बा। ई अंक अपना भीतरि नीमन कहानियन के लमहर सृंखला का संगे कविता, गीत,गजल, समीक्षा आ आउर बहुत कुछ लेके आ रहल बा। परयास त बा कि ई क्रम चलत रहे बाकि कबले चलत रही,ई कहलो मुस्किल बा। भोजपुरिया समाज हर बरीस लेखा असवों पछिला एक महिना से त्योहारन के जिये शुरू क चुकल बा  आ ई क्रम अगिला अगहन तक चलते रही। पितर-पुरुखा लोग के माथ नवावत माई के अरचना करत अन्नदाता के अगहनों के खुसी भेंटाई। बाकि असों एगो लमहर क्षेत्र सूखा के चपेट में आवत देखात बा, जवन सुखद त नइखे। बाढ़ आ सुखाड़ के जीवटता के संगे जीये वाला भोजपुरिया समाज एहु सूखाड़ के अपना रंग में जीये के परयास जरूर करी। अइसना में भोजपुरी साहित्य सरिता अपना के सभका में मेझरत-मेझरात डेगे-डेग आगु सरके ला अगरा रहल बा। एह अगरइला के राउर सभे क नेह-छोह पहिले लेखा आगहूँ भेंटात रही,एकर पूरा बिसवास बाटे।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

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